नॉर्थ ईस्ट का सबसे बड़ा नेता हिमंत बिस्व सरमा
नई दिल्ली.
राजनीति में अक्सर वफादारी, काबिलियत पर भारी पड़ती है लेकिन सही वक्त पर किए फैसले और मेहनत इस धारणा को गलत भी साबित कर देते हैं. यही काम मई 2021 में असम के मुख्यमंत्री बने हिमंत बिस्वसरमा ने किया है. पांच राज्यों के चुनाव परिणामों में असम में भारतीय जनता पार्टी ने बहुमत हासिल किया तो सवाल उठने लगे कि सर्वानंद सोनोवाल मुख्यमंत्री बनेंगे या हेमंत बिस्व सरमा क्योंकि 2016 से 2021 तक सोनोवाल मुख्यमंत्री रह चुके थे. लेकिन इस सवाल का जवाब पाने के लिए हमें हेमंत की उस ताकत का अंदाजा लगाना पड़ेगा जिसने भाजपा आलाकमान को उन्हें मुख्यमंत्री की कुर्सी पर खुशी-खुशी बैठाने के लिए बाध्य कर दिया.
हिमंत ने 2015 तक कांग्रेस की राजनीति की. असम के पूर्व मुख्यमंत्री हितेश्वर सैकिया से राजनीति के गुर सीखने वाले हिमंत ने 2001 से लेकर 2015 तक असम के जालुकबाड़ी विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस के विधायक रहे.
वे तरुण गोगोई के मंत्रिमंडल में मंत्री भी रहे लेकिन उन्होंने 2014 में मंत्री पद से त्यागपत्र दे दिया. इसकी वजह गोगोई से उनकी खटपट तो थी ही साथ ही वे जब अपनी बात रखने दिल्ली पहुंचे तो वहां कांग्रेस के शीर्ष नेता राहुल गांधी ने उनकी एक नहीं सुनी और भारी मन से लौटे हिमंत ने आगे की राह अलग करने का फैसला किया. वे भाजपा में आए और 2016 का विधानसभा चुनाव लड़कर जीते. हालांकि तब भाजपा के सोनोवाल मुख्यंमंत्री और हिमंत मंत्री बनाए गए थे. लेकिन 2021 के चुनाव से पहले ही उन्होंने सीएम पद पर अपनी दावेदारी एक तरह से ठोक दी थी. इसके लिए उन्होंने राजनीतिक संकेतों का इस्तेमाल करते हुए चुनाव न लड़ने का अर्थ देने वाले बयान भी दिए थे लेकिन पार्टी ने उनका महत्व पहचान लिया था.
दरअसल, भारत के राजनीतिक क्षितिज में ऐसे कुछ ही नेता हैं जो अपने राज्य के अलावा दूसरे राज्यों में भी असर रखते हों और हिमंत वैसे ही नेता हैं. वे नॉर्थ ईस्ट डेमोक्रेटिक अलायंस (नेडा) के संयोजन हैं और उन्होंने उत्तर पूर्वी राज्यों में भाजपा की पैठ बनवाने में गजब का काम किया है. त्रिपुरा से माकपा को उखाड़ फेंकने और भाजपा की सरकार बनवाने के अलावा मणिपुर में बगैर बहुमत के भाजपा की सरकार बनवाई और अरुणाचल प्रदेश में भाजपा की सरकार बनवाई. यही नहीं नगालैंड, मिजोरम और मेघालय में भी गैर कांग्रेसी सरकारें बनवाने में उनकी बड़ी भूमिका रही. यानी उत्तर पूर्वी राज्यों में भाजपा की मौजूदगी और कांग्रेस के सफाए के पीछे हिमंत की सबसे बड़ी भूमिका रही. छात्र जीवन से राजनीति में आए हिमंत ने कांग्रेस पार्टी से अपना सफर शुरू किया था और बाद में क्षेत्र में कांग्रेस पार्टी को समेटकर उन्होंने अपना राजनीतिक पराक्रम दिखा दिया.